Thursday 29 November 2012

पत्थर

मैं जब भी सोचता हूं
 अपने होने और ना होने की
अहमियत के बारे में
 तब मुझे सही मायनों में लगता है
 कि मैं इंसान हूं.
 जो न कुछ खोता है न पाता है ...
बस खोने और पाने के महिन रेशों में उलझता है.
 जो पत्थर तोड़ता है
बड़ा मजबूत इंसान है
 पत्थर की तरह
पर इंसान ही है.
 मरता है वो
 तोड़ कर पत्थर
 उन्हें सौंप जाता है,
जो पत्थर बन कर बैठें हैं


राहुल पाण्डेय "शिरीष''