Thursday 24 May 2012

आरोप .....

वो पल जब अलग हुई
साँसो की भाषा ,
जब आलिंगन की बेहोशी से
उठ
दो भिन्न दिशाओं को ,चल
दिये थे हम ।
किसी अंजान से ब्रह्मांड में ,
एक धूधली सी परछाई मे
चल ,पड़े थे हम ।
एक अज्ञात भविष्य ,
सामने मुह फाड़े खड़ा था ,,
और भीतर
का कोमल कंपन करता
हृदय
अंतिम याद को संजोने
पीछे मुड़ना चाहता था ।
एक रेखा जो दूरी की
इकाई बनती जा रही थी ,
बढ़ती चली जा रही थी ।
कम करना ,,मिटाना मुश्किल था
इसके
दोनों छोरो पर
अवसादों की खोखली दलीले थी ,
व्यर्थ के आंसुओं से बुझती दीपे थी ।
दूरी बढ़ाती रेखा का विस्तार
"अखंडता का परिचायक था"
भावों की हत्या थी ।
.
.
दोनों तरफ घसीटे जाते
दो उन्मादी जा रहे थे ,,
जिन पर संस्कृति
के हनन का
आरोप था ......

.....राहुल पाण्डेय "शिरीष"

Wednesday 23 May 2012

तृप्ति ..........

धीरे से जुल्फों के
मधुर गीत बज उठे थे ,
जब ,
चाँदनी ने मेरे स्पर्श पर
उसे छेड़ा था ।
नज़रों के खेल मे
उसके
सारे आग्रह प्रस्तुत हुए
और
बाहों ने बाहों को घेरा था ।
रक्त मे व्याप्त कितने
अश्व ,सारथी को
तलाशते
फिर रहे थे धमनियों मे
प्रवेश को आतुर थे
ऊष्मा ने जहां
षड्यंत्र रचा था ।
व्याकुलता के तीर गड़
रहे थे ,
अधरों से नीर झर रहे थे ,
पहचान साँसो की
भला कैसे होती ?????
सांस राग एक साथ
एक हो बज रहा था ।
कुछ भाव संचारित हुए
एक दूसरे मे ,
एक दूसरे के ।
हृदय ने स्वागत किया
उँगलियों की जकड़न
कसती सी बताती थी ....
अन्तर्मन हो चुका तृप्त था .....

..........राहुल पाण्डेय "शिरीष"

Saturday 5 May 2012

द्वंद ..........

जब रात सोती ,
थक हार तेरे आँचल मे
तेरी ज़ुल्फों से और,,
काली हो जाती ।
माटी की दीवार पर
पीठ टिकाये ,
कल के सुंदर होने की
परिकल्पना से
अंतरप्राण मे नवीन
ऊर्जा भरती ।
छिद्र युक्ता छत के नीचे
दो देह की पहचान
को चंद्रमा प्राय देखता ,,
और
उभरी सी साडी
के पाढ़ को रात भर
धरती छूती रहती ।
रात के इस नैसर्गिक
सुख के उपरांत ,,
सुबह रोज़ की तरह
आती ...... और
कंधो पर लाद देती
जीवित रहने का प्रश्न ।
स्वाधीन होने का प्रश्न।
उन मनसिकताओं से
जो मानव मूल्य को
हैं
तोड़ती ।
सूखने न देती ,,और
न ही मूल्य देती
उन बूंदियाते पसीनों के
जो व्यर्थ नष्ट होते ,,,
और
किसी की दुनिया
सजती
जाती .............

............राहुल पाण्डेय "शिरीष "