Thursday 21 June 2012

पत्थरों का संवाद ..............

पत्थरों का संवाद
कल रात सुना था |
उनमे वर्षो से उद्वेग
पनप रहे थे |
वो भाव जो
भीतर की जटिल
आणुविक संरचना को
भेदना चाहता था ,
पर हर बार
परस्त हो जाता था |
अपने आप में फिर से
सिमट जाता था |
प्रतिशोध और पतिवाद
के अंतर पर ,उद्वेग
सक्रिय था |
हर बार की
कोशिश के साथ वो
शंखनाद करता
अपने अस्तित्वा का |
भाव जो एक तीव्र गति से
संरचना के क्रियाप्रणाली
को
सिथिल करता था |
जिससे पत्थर में
दरार आ रही थी |

.....................राहुल पाण्डेय "शिरीष"

Saturday 9 June 2012

मैं इन्तेजार करूँगा ..

रात जब तारों को नींद आने लगे ,
चाँद भी नींद से बोझिल हो सुस्ताने लगे ,,
चुपके से ,,,
प्रिये दस्तक देना द्वार पर
मैं इन्तेजार करूँगा ..
तेरे आने के सारे अनुक्रम तैयार करूँगा .
जीवन के पृष्टो को क्रमानुसार सजाऊंगा ,
प्रिये दस्तक देना द्वार पर
मैं इन्तेजार करूँगा ..
जब हत्या न की जाये नयी सोच की
जब स्वीकार ले समाज प्रेम के ओज को
कुंठाओं में अपने प्रेम को कैसे
अपनाऊंगा ......
प्रिये दस्तक देना द्वार पर
मैं इन्तेजार करूँगा ..
जब बादल भी बने अखंड आकाश
दूर हो कर भी हो
निकटता का एहसास
जब सुलझ जाये
सारे उलझन
और बुझ जाये सबो की प्यास
प्रिये दस्तक देना द्वार पर
मैं इन्तेजार करूँगा ..

.....................राहुल पाण्डेय "शिरीष"