Thursday 26 April 2012

आँखों की नमी .........

मेरी आँखों की नमी
पैरहन थी
उसकी यादों की ,
आज जो बह चली
आज शब गुजरने
को हुई थी ,
डुबना चाहा था
किरणों संग उस पार
पर ,
उन रश्मियों की कड़िया
शायद कुछ कमजोर थी ,
भाप बनाती रही
जिसे
आँखों की नमी ।
जिसकी आकृति खोजता
हुआ ,रोज़ चाँद की
छवि बदलता ,,
रकाबत करता चाँद
उसकी खोज से
जो बढ़ा देती
आँखों की नमी ।
हर रात गुजरती एक
मुराद पाले ,
की आफताब संग
सुख जाएंगे आँसू ।
उम्मीदों को परम आकार
मिलेगा ,
पर
हर बार
आकार के रेखांकित
आवरण को
मिटा देती
आँखों की नमी .........

................राहुल पाण्डेय "शिरीष"

Saturday 14 April 2012

मैं रोता जाता ...................

झाँकती नज़रें ,
धुंध की सतह पर ,
प्रभाव डालती ,छेड़ती
उस अंतरंग की खोज मे
व्याकुल हृदय से पुकारती ,
मन,अशांत बादल सा गर्जन
करता ,
बरस न पता ,भीतर ही भीतर गूँजता
रहता ।
उस निशा जब विदा हुई यादें
अकेलापन दिखा घर बनाते ,
चाँद भी असहाय अटका रहा
फ़लक पर
देखता रहा अपनी चाँदनी संग ,
मुझे आँसू बहाते
उन जटिल संदर्भों की व्याख्या
था मैं करता ,सुनाता
उसे समझता ।
इस विकट परिस्थिति मे
साथ उसका मिल न पाया ।
जिसके संग अनुभूतिओं का संचार
किया था ,
जिससे मैंने प्यार किया था ।
जो अकड़े टूट गए ,
शफाफ़्फ से उन अर्थों
का बोध होता ।
सक्रियता -सिथिलता मे
खोती जाती ।
धुंधली सी उसकी याद मे
मैं रोता जाता
मैं रोता जाता .........

.................राहुल पाण्डेय "शिरीष"