अब तो कुछ यूं हालात हैं,
न जीने की राह है,न मरने की बात है,
अब तो दूसरों के जुमलों से काम चलाते हैं,
मेरे ऊपर तो खुद किसी के निशान-ए-घात हैं ।
रेतीले तट की चाँदनी पर देखा तुझे उस रात ,
उड़ती लट्टे,बिखरा योवन,जाने किसके साथ,
आज तो मेरे पास हो कर भी मुझसे दूर है ,
मार दूँ या खुद मर जाऊँ लेकर तेरे हाथ ।
मैं तो फन्ना होने को तैयार था
भू -गर्व में पालक मूँद कर सो जाने को तैयार था ,
तुम होठो के लिफाफे को खोल कर बोल देती ,
मैं तो सारा गरल पी कर तुम्हें अमर कर जाने को तैयार था ।
रीति रिवाजो की दुहाई देती है वो
अपने बद्दपन की सफाई देती है वो ,
मैं तो पहले की तरह मौन आज भी सुनता हूँ ,
"शिरीष" आज भी अपने बचाओ मे गवाही देती है वो ।
एक बार तो कुछ यूं हो जाता ,
मेरा नूर मेरा गुरूर हो जाता ,
फिर तो मैं सारी दुनिया से मुह फेर लेता ,
अगर मेरी ख्गुमारी पर उसका सुरूर हो जाता ।
आत्मा संघर्ष के राह पर चलती रही ,
रातों में दिये बुझे ,दिल की धड़कन जलती रही ,
चरित्रहीन तो हम थे तुम्हारे लिए हमेशा से ,
तो फिर तुम क्यौ ?अपने अतीत को जमाने से बचाती रही ।
--- शिरीष
न जीने की राह है,न मरने की बात है,
अब तो दूसरों के जुमलों से काम चलाते हैं,
मेरे ऊपर तो खुद किसी के निशान-ए-घात हैं ।
रेतीले तट की चाँदनी पर देखा तुझे उस रात ,
उड़ती लट्टे,बिखरा योवन,जाने किसके साथ,
आज तो मेरे पास हो कर भी मुझसे दूर है ,
मार दूँ या खुद मर जाऊँ लेकर तेरे हाथ ।
मैं तो फन्ना होने को तैयार था
भू -गर्व में पालक मूँद कर सो जाने को तैयार था ,
तुम होठो के लिफाफे को खोल कर बोल देती ,
मैं तो सारा गरल पी कर तुम्हें अमर कर जाने को तैयार था ।
रीति रिवाजो की दुहाई देती है वो
अपने बद्दपन की सफाई देती है वो ,
मैं तो पहले की तरह मौन आज भी सुनता हूँ ,
"शिरीष" आज भी अपने बचाओ मे गवाही देती है वो ।
एक बार तो कुछ यूं हो जाता ,
मेरा नूर मेरा गुरूर हो जाता ,
फिर तो मैं सारी दुनिया से मुह फेर लेता ,
अगर मेरी ख्गुमारी पर उसका सुरूर हो जाता ।
आत्मा संघर्ष के राह पर चलती रही ,
रातों में दिये बुझे ,दिल की धड़कन जलती रही ,
चरित्रहीन तो हम थे तुम्हारे लिए हमेशा से ,
तो फिर तुम क्यौ ?अपने अतीत को जमाने से बचाती रही ।
--- शिरीष
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