Thursday 26 April 2012

आँखों की नमी .........

मेरी आँखों की नमी
पैरहन थी
उसकी यादों की ,
आज जो बह चली
आज शब गुजरने
को हुई थी ,
डुबना चाहा था
किरणों संग उस पार
पर ,
उन रश्मियों की कड़िया
शायद कुछ कमजोर थी ,
भाप बनाती रही
जिसे
आँखों की नमी ।
जिसकी आकृति खोजता
हुआ ,रोज़ चाँद की
छवि बदलता ,,
रकाबत करता चाँद
उसकी खोज से
जो बढ़ा देती
आँखों की नमी ।
हर रात गुजरती एक
मुराद पाले ,
की आफताब संग
सुख जाएंगे आँसू ।
उम्मीदों को परम आकार
मिलेगा ,
पर
हर बार
आकार के रेखांकित
आवरण को
मिटा देती
आँखों की नमी .........

................राहुल पाण्डेय "शिरीष"

No comments:

Post a Comment