Wednesday 23 May 2012

तृप्ति ..........

धीरे से जुल्फों के
मधुर गीत बज उठे थे ,
जब ,
चाँदनी ने मेरे स्पर्श पर
उसे छेड़ा था ।
नज़रों के खेल मे
उसके
सारे आग्रह प्रस्तुत हुए
और
बाहों ने बाहों को घेरा था ।
रक्त मे व्याप्त कितने
अश्व ,सारथी को
तलाशते
फिर रहे थे धमनियों मे
प्रवेश को आतुर थे
ऊष्मा ने जहां
षड्यंत्र रचा था ।
व्याकुलता के तीर गड़
रहे थे ,
अधरों से नीर झर रहे थे ,
पहचान साँसो की
भला कैसे होती ?????
सांस राग एक साथ
एक हो बज रहा था ।
कुछ भाव संचारित हुए
एक दूसरे मे ,
एक दूसरे के ।
हृदय ने स्वागत किया
उँगलियों की जकड़न
कसती सी बताती थी ....
अन्तर्मन हो चुका तृप्त था .....

..........राहुल पाण्डेय "शिरीष"

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