Tuesday 10 July 2012

मौन......

वो चरम सीमा ,जहाँ
शब्द शेष होते हैं
और मन
बीहड़ में पहुँच
अबोध ,पथिक सा
ताकता है -राह को -|
मौन छाता है ,दूर-दूर
की भ्रांतियां मौन
की साख पर आती हैं ,
स्थिर हो जाती हैं |
चिंतन की धारा,गरिष्ठ
भाव से मन को
खंगालती हैं |
उत्पन्न करती हैं
निर्विकार प्रतिबिम्ब,,और
प्रवाह करती हैं
चिर परिवर्तनशील
सागर की ओर,
जहाँ अभय कृति
का निर्माण होता है |
और भोर की नन्ही किरणों
की सी ,नाव में,तैरती हैं
धमनिओं में बहती हैं |
संघर्ष से विश्राम मन
पाता है |
शब्दों की क्लांत ध्वनि
से
मौन का प्रसार
प्रभावी होता है |

...............राहुल पाण्डेय "शिरीष"

1 comment:

  1. शब्दों की असमर्थता से जन्मे मौन से लेकर शब्दों की क्लांत ध्वनि तक का अत्यंत गंभीर और अवर्णनीय सफ़र तय करती अत्यंत प्रभावपूर्ण रचना

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