Thursday 21 June 2012

पत्थरों का संवाद ..............

पत्थरों का संवाद
कल रात सुना था |
उनमे वर्षो से उद्वेग
पनप रहे थे |
वो भाव जो
भीतर की जटिल
आणुविक संरचना को
भेदना चाहता था ,
पर हर बार
परस्त हो जाता था |
अपने आप में फिर से
सिमट जाता था |
प्रतिशोध और पतिवाद
के अंतर पर ,उद्वेग
सक्रिय था |
हर बार की
कोशिश के साथ वो
शंखनाद करता
अपने अस्तित्वा का |
भाव जो एक तीव्र गति से
संरचना के क्रियाप्रणाली
को
सिथिल करता था |
जिससे पत्थर में
दरार आ रही थी |

.....................राहुल पाण्डेय "शिरीष"

2 comments:

  1. पत्थर को सुसंस्कृत मन/.बुद्धि/ आत्मा का और "भाव " को विषमताओं या सांसारिक घात प्रतिघातों की प्रतिक्रिया का प्रतीक बनाकर वैज्ञानिक शब्दावली का प्रयोग करते हुए ,उद्वेलन का साक्षात् चित्रण मनोहारी है, और नया भी . कुछ टंकण की चुके हैं , जिन्हें संसोधित करने की सलाह है.

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  2. mujhe bhi kuch khamiya lag rahi hain aage ki rachnao me iska dhayan rakhunga ...dhanyawad tippni ke liye aadarnia .......................aabhar shirish

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