Sunday 8 July 2012

प्यार क्यों ?......

प्यार क्यों ?
क्यों एक अणु को
विकसित कर ,वेदना दूँ ?
क्यों प्रतिघात के संशय में
हर पल रहूँ ?
भविष्य को आश्वस्त
करूँ क्यों ?
वर्तमान का प्रतिनिधित्वा
न कर सकूँ |
इस अबूझ पहेली में
आकारहीन-क्रीडा
क्यों रचूँ?
प्रेम "भावना" का उत्प्रेरक है ?
या
वहां तक का मार्ग जहाँ -
विश्रिन्खल होता है
मनोभाव /और
उत्पन्न होता है
बंधन/दासता?
एक दुसरे को परस्पर
काटती रेखा |
कटांक बिंदु पर/दोनों के
समान मुल्यांकन होते हैं |-
ये बंधन है |
ऐसे बंधन में टूट
जाना चाहता हूँ |
आसाध्य वेदना सह लूँगा
इसके लिए |
पर दासता ?
में पूरी कटांक
बिंदु एक पक्ष में ?
सिहरन कौंध जाती है
मस्तिष्क तक |
उस "प्रमुख धौंस युक्त "पक्ष
के छाप
देह पर ,
मन पर ,
इच्छा पर,
अनिच्छा पर ,
जो घिन पैदा करते हैं |
और बार-बार
रोकती हैं ,
उस अणु को विकसित होने से
वेदना देने से
.
.
.
फिर
प्यार क्यों ?


.............राहुल पाण्डेय "शिरीष"

1 comment:

  1. भौतिक और सांसारिक प्यार के यथार्थ रूप को प्रकट कर उसकी नकारात्मक शक्तियों को प्रकट करने वाली यह रचना आज के फेस्बूकीय परिवेश में ही नहीं , बल्कि अनंत काल से तथाकथित प्यार को महिमामंडित कर नारे लगाते पाखंडी समाज के सम्मुख प्रकट करना निश्चय ही अदम्य साहस का कार्य है . भले ही ये भाव हर जन के मन में हमेशा गुंजायमान होते हों पर उन्हें इस तरह प्रकट कर पाना किसी सत्य के पुजारी का ही साहस हो सकता है. शतशः नमन ,सत्य के उद्गाता रचनाकार को.
    प्रेम "भावना" का उत्प्रेरक है ?
    या
    वहां तक का मार्ग जहाँ -
    विश्रिन्खल होता है
    मनोभाव /और
    उत्पन्न होता है
    बंधन/दासता?...........वाह ! कटु किन्तु सत्य !

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