Wednesday 20 March 2013

कोई कैसे असामाजिक हो जाता है?

किस तरह कोई आपके लिए असामाजिक होता है और आप किस स्तर पर उसकी असामाजिकता नापते हैं यह पूरी तरह आपके ऊपर निर्भर करती है. बाहुत बार कुछ ऐसी बातें आपके कानों या आंखों के सामने से गुजर जाएंगी जिसके ऊपर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि आखिरकार ऐसा करने के पीछे क्या कारण रहा होगा या कोई अपने आनन्द के लिए इस हद तक जा सकता है जिससे आप सोचने पर मजबूर हो जाएं. देश की तात्कालिक स्थिति को देखते हुए यह बात तो कहा ही जा सकता है कि यहां समाज का अस्तित्व ही खत्म हो रहा है. जिस तरह से समाज में दूसरी तरह से समाज को बचाने का प्रयत्न किया जा रहा है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह सारे प्रयोग विफल ही साबित होंगे. यह दूसरी तरह से प्रयत्न कुछ ऐसे हैं जिसके ऊपर भरोसा ही नहीं किया जा सकता है कि वो समाज की खोती जा रही पहचान को बचाने में अपना योगदान दे सके. यहां समाज को सुधारने या बचाने के लिए अपने धर्म और संस्कृति को जीवित रखना तथा उसका प्रचार करना सबसे बड़ा हथियार बनता जा रहा है, इसके अलावा जो मौलिक स्तर पर सुधार होना चाहिए उसके ऊपर कोई नजर नहीं दे रहा है. क्या मात्र धर्म और संस्कृति को बचाए रखने और उनके प्रचार से ही समाज को सुधार और उसकी गरिमा को बचाए रखा जा सकता है? इससे भले ही धर्म और दक्यानूसी रीतियां बची रहें पर समाज में इंसानियत या समाज के प्रति इंसानियत के खत्म होने से कोई नहीं बचा सकता है.

Indian Politics

भारत में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास पैदा होने के कुछ प्रमुख कारणों में यहां की दोगली राजनीति भी उतनी जिम्मेदार है जितना की उस राजनीति को प्रस्रय देने वाले यहां के नागरिक. यहां ऐसे प्रचार और ऐसी राजनीति कर कोई प्रधानमंत्री होने का स्वप्न देख सकता है पर सही मायने में वो समाज के प्रति बदलाव की इकाई नहीं बन सकता है. अगर हमारे भीतर सही और गलत के निर्णय कर पाने का सामर्थ होता तो हम कब का एक योग्य और सुचारु रास्ता खोज निकालते और उसके प्रति कर्तव्यनिष्ठ हो गए होतें. जिस किसी भी आधार पर यहां बदलाव के किया जाता है वह कहां तक सही है इसे किस परिक्षा द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है इस भी विचार अनिवार्य है. अगर `कोई भी आज के जमाने में यह मानता है कि किसी लोकतांत्रिक देश की रुप-रेखा को बदलने के लिए राजनीति एक अच्छा उपकरण है तो यह उस मानव-मात्र का भ्रम ही हो सकता है.

Politics in India

पता नहीं पर हर बार की घटना यह बता जाती है कि हम एक कमजोर और अव्यवस्थित देश में रहते हैं जहां ना तो सियासत में कोई दम है और ना ही कोई फैसले लेने में यहां कि सरकारें अपना जौहर दिखा पाती हैं. यहां भले ही दम नहीं दिख पाता है सरकार का पर उनके बिकने के दाम के बारे में सबको अंदाजा रहता है और इसकी भी जानकारी रहती है कि कौन किसकी कितनी बोली लगा सकता है. किसी भी घटना पर यही सुनने को मिलता है कि इस पर कड़ी कार्यवाही की जाएगी पर आज तक कितनों पर यह कार्यवाही की गई है इनके आंकड़े आपके पास भी होंगे और उनके पास भी जो कार्यवाही करने की बात करते हैं. आम तौर पर आपने सुना होगा लोगों को यह कहते हुए कि हमें गर्व है कि हम इस देश में रहते हैं पर आप ऐसा कोई भी कारक दिखा सकते हैं जिससे आज के समय में आपको गर्व की अनुभूति होती हो? शायद ही आपको मिले!! मैं यह भी नहीं कहना चाहता कि हमारे यहां कुछ हुआ ही नहीं है या कुछ होता ही नहीं है पर जिस गति से वो सारा कुछ घटित हो रहा है उससे विकास की गति कितनी तेज हो सकती है और भारत किस हद तक विकासशील हो पाएगा. ऊपर के अंश में लिखा गया सामाजिक और असामाजिक शब्द मात्र किसी धर्म या जाति के प्रति अलगाव या प्रचार को नहीं रेखांकित करते हैं बल्कि एक समूचे राष्ट्र के प्रति असामाजिक होने की गवाही देता है और यहां कितने लोग इस कसौटी पर खरे उतरते हैं यह जानने और सोचने का एक अच्छा कारण बन सकता है जिसकी आज के भारत को बहुत ज्यादा जरुरत है.

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