Saturday 14 April 2012

मैं रोता जाता ...................

झाँकती नज़रें ,
धुंध की सतह पर ,
प्रभाव डालती ,छेड़ती
उस अंतरंग की खोज मे
व्याकुल हृदय से पुकारती ,
मन,अशांत बादल सा गर्जन
करता ,
बरस न पता ,भीतर ही भीतर गूँजता
रहता ।
उस निशा जब विदा हुई यादें
अकेलापन दिखा घर बनाते ,
चाँद भी असहाय अटका रहा
फ़लक पर
देखता रहा अपनी चाँदनी संग ,
मुझे आँसू बहाते
उन जटिल संदर्भों की व्याख्या
था मैं करता ,सुनाता
उसे समझता ।
इस विकट परिस्थिति मे
साथ उसका मिल न पाया ।
जिसके संग अनुभूतिओं का संचार
किया था ,
जिससे मैंने प्यार किया था ।
जो अकड़े टूट गए ,
शफाफ़्फ से उन अर्थों
का बोध होता ।
सक्रियता -सिथिलता मे
खोती जाती ।
धुंधली सी उसकी याद मे
मैं रोता जाता
मैं रोता जाता .........

.................राहुल पाण्डेय "शिरीष"

4 comments:

  1. bahut sundar rahul ji...

    ReplyDelete
  2. Rahul Bhai,
    To be honest your level is quite high you deserver more.
    Try doing something big....best of luck...

    ReplyDelete
  3. Taral bhavon ki lahron mein dubaati si rachna

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुंदर और संवेदनशील रचना है, अन्तःकरण में अपनी जगह बना गई ये।

    ReplyDelete