Thursday 24 May 2012

आरोप .....

वो पल जब अलग हुई
साँसो की भाषा ,
जब आलिंगन की बेहोशी से
उठ
दो भिन्न दिशाओं को ,चल
दिये थे हम ।
किसी अंजान से ब्रह्मांड में ,
एक धूधली सी परछाई मे
चल ,पड़े थे हम ।
एक अज्ञात भविष्य ,
सामने मुह फाड़े खड़ा था ,,
और भीतर
का कोमल कंपन करता
हृदय
अंतिम याद को संजोने
पीछे मुड़ना चाहता था ।
एक रेखा जो दूरी की
इकाई बनती जा रही थी ,
बढ़ती चली जा रही थी ।
कम करना ,,मिटाना मुश्किल था
इसके
दोनों छोरो पर
अवसादों की खोखली दलीले थी ,
व्यर्थ के आंसुओं से बुझती दीपे थी ।
दूरी बढ़ाती रेखा का विस्तार
"अखंडता का परिचायक था"
भावों की हत्या थी ।
.
.
दोनों तरफ घसीटे जाते
दो उन्मादी जा रहे थे ,,
जिन पर संस्कृति
के हनन का
आरोप था ......

.....राहुल पाण्डेय "शिरीष"

3 comments:

  1. संस्कृति के हनन का आरोप लगा कर समाज द्वारा , दूरी की इकाई के दोनों विपरीत शिरों पर खींचे जा रहे उन्मादियों की न तो कथा, न ही व्यथा कोई नयी है , न ही अवसादों की खोखली दलीले या व्यर्थ के आंसुओं से बुझती दीपे नए हैं , नयी होती है केवल उस व्यथा की गहराई, जो नए ढंग से नए आयामों को छूती है और इस नयी गहराई का मापन करने में आपने इस रचना में बड़े सादगी पूर्ण ढंग से पूरी महारत दिखाई है . साधुवाद

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद किशोर सर ,बस निरंतर आपकी दृष्टि बनी रहे मेरी रचनाओ पर ,,स्नेह मिलता रहे ,,आशा करता हूँ ....धन्यवाद "शिरीष"

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  2. शुभ कामनाएं कि फूल खिलते रहें ..खुशबु बिखराते रहे ...इसी खुशबु और रंगत से सजेगा आपके और हमारे भी सपनो का साम्राज्य ...साम्राज्य हिंदी का ..
    -संदीप भालेराव "सिद्धांत"

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