Thursday 15 March 2012

अनुत्तरित प्रश्न ....

आज भी वो प्रश्न अनुत्तरित है
जो भूत से हम ढोते आ
रहे हैं ।
प्रश्न ये है ;की
क्या
वो आज़ाद है
या फिर
उड़ रही है ,
पर
डोर आपके
हाथों में हैं ?

उसकी संयम की कथा ॥
इतिहास मे होगी (देखिएगा)
जिसको दोहराती आई है
आज तक वो .....
कितनी पीढ़िया बीत चुकी ..
कितने जमाने गुजरे ....बदलें
उसका रूप बदला ॥सौन्दर्य
----परिमार्जित हुआ ।
पर संयम-वृति
ज्यों-के-त्यों
ढोती आई है
आज तक वो ....

उसके रक्त-स्राव
से लेकर अंगा तक
पर
आलोचना की
गयी ।
विकृत मानसिकता का
चित्रित
वर्णन का सामना
करती आई है
आज तक वो ....

वो एक अदृश्य सा ज़ंजीर
पहनी है गले मे ।
जिसकी कुंजी
उसके पास नहीं है ,,
वो लाचार है .......
पर हम से ज्यादा
प्रगतिशील ।
वो नाखून से घिस काट
देगी ...जंजीरों को
एक दिन ,,
जिससे
बंधित
थी ,,है
आज तक वो ....

ये प्रश्न कब सुलझेगा ?
क्या उत्तर है तुम्हारे पास ?
धाराएँ अनुकूल कब होंगी ?
जिसकी ढेव से फिसलता
रहा है ये प्रश्न ,
और जिसकी समीक्षा/हल की
आस मे है ......
आज तक वो ....

......राहुल पाण्डेय "शिरीष"

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