इक रात कुछ यों हुआ ,
चाँद ने बादलों को
ढक दिया |
खियाबान पर तेरे
साथ ,
जीवन को अर्थों
से शोभित किया |
व्याकुलता से व्याप्त
मन को ,तुमने
संज्ञाएँ प्रदान
किया |
ध्रुव तलाशते ,
निर्जन मन को
तेरे आशा रूपी
दीपों ने राह,
दिखा दिया |
सारे संकोंचो
को परास्त कर ,
उर्मिओं के संवेद
भावों से हमने
नूतन संसार ,
गठित किया |
............राहुल पाण्डेय "शिरीष"
सुन्दर है यह अंतरंग क्षणो की अभिव्यक्ति
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