Thursday 23 February 2012

एहसास ...

वो आती ,अपना बनाकर
एहसासों के फुव्वारे
से भीगा जाती |
वो शून्य में प्रवेश कर ,
ख्वाइशों के बिखरे
पन्नो को समेटती |
अन्तर्मन के तम में ,
झांकती ,पुकारती
मुझे,मुझसे पहचान कराती |
भावों के टूटे रेशों पर
गगन-चुम्बी शिखरों
सी आशाएं सजाती |
वो आधार सा बन कर
विश्वास की टूटी पुलिया की
धूल भरी
सड़क पर अपने महावर
से रौनक लाती |
तारों से ज्योति लेकर
जुल्फों में अगरचे की
खुशबु सवारे
विरानीओं में फूलों की
सेज सजाती |
वो आती ,अपना बनाकर
एहसासों के फुव्वारे
से भीगा जाती |

......राहुल पाण्डेय "शिरीष "

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