Monday 6 February 2012

ध्वस्त स्वर ..............

ध्वस्त संसार के अंधकारमयी,
प्रकाश में ,
भावनाएँ नहीं पनपती ,
यहाँ मुर्दें भी सर फोड़ते नज़र आते हैं |
काल-चक्र से रौन्दाते मानव के ,
बुन्दियते पसीने में ,
छार नहीं होता ,यहाँ लाल रक्त ,
स्राव में ख़ुशी नज़र आती है |
सत्य को फावड़े से खोद ,
बेचने में ,
हाथें नहीं कांपती ,
यहाँ हवास को मनोरंजन का रूप ,
देते नज़र आते हैं |
अधखिली कलि की पांखुडियों में ,
आज शबनम नहीं भरता ,
विष का स्राव कर ,
यहाँ मरुस्थल ,बनते नज़र आते हैं |
मानव आज मानवता में विश्वास नहीं करता ,
काम का भोग कर ,
यहाँ हर घर में ,
कामदेव बनते नज़र आते हैं |

............राहुल पाण्डेय "शिरीष"

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