Friday 17 February 2012

करवट बदल रहा है.......

उस घर में एक आइना ही है ,
जो मुझे पहचानता है ,
और जो है ,लगता है ,नींद में
करवट बदल रहा है |
साँस लेने में डर लगता है ,
कोई टोक न दे ,
कहता है साँसों को जरा,
धीमे लो ,
की, मेरी नींद में खलल न दे |
फर्श से सटे दीवार पर ,
मंदिर टंगी है
उसकी मूर्तियाँ न जाने
कब से रूठी बैठी हैं |
चाहता हु कोई जवाब दे |
इस दो कमरों में न जाने ,
कितनी दूरियां हैं ?
आज कोई फासलों की नयी ,
परिभाषा दे रहा है
उस घर में एक आइना ही है ,
जो मुझे पहचानता है ,
और जो है ,लगता है ,नींद में
करवट बदल रहा है |
खिड़की पर चिटिओं की
कतार देख के जलता हूँ |
बार-बार पोंछता हूँ उन्हें ,
वो फिर आ जाती हैं |
सोचता हूँ तक़दीर की लकीर
इतनी फिसलन भरी क्यों है ?
दरवाजा भी खुलता है
मेरे आने पर,ऐसी आवाज के साथ ,
की पता नहीं उसे ,
तंग किये जा रहा हूँ ,या
वो रोज़ मुझपे एहसान
किये जा रहा है |
उस घर में एक आइना ही है ,
जो मुझे पहचानता है ,
और जो है ,लगता है ,नींद में
करवट बदल रहा है |
अब होश नहीं है ,
जज्बा नहीं है ,
किसी के प्रतिबिम्ब की ,
वो छांह नहीं है
विद्रोह करू या थक-हार
हांथो पर ललाट रख दू ,
दीवारों की सीलन ,चीखती है ,
हंसती है आज ,
"थाम ले करवट बदलने वाले "
कोई उदासी की खाई में गिरता
जा रहा है |
उस घर में एक आइना ही है ,
जो मुझे पहचानता है ,
और जो है ,लगता है ,नींद में
करवट बदल रहा है |

.............राहुल पाण्डेय "शिरीष"

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