खुद को तुझे समर्पित करना ,
खुद को मुझे अर्पित करना ,
युगल भावों से सपने गढ़ना ,
निशा-रवि की जुगलबंदी में .
अपनी एक अवनी धरना ,
बातों और तर्कों से ,देखो
भेदेंगे हमें लोग यहाँ के ,
तरह-तरह के तंज कसेंगे
फिकरे देंगे ,बिखरा देंगे
तृप्ति के उन मूल्यों को
संजोना ..........
खुद को तुझे समर्पित करना ,
खुद को मुझे अर्पित करना ,
हम नया एहसास देंगे
अपनी कथा को सारांश देंगे
विगत युगों की परिभाषा को
हम नयी पहचान देंगे
दर्द की काली रात को
हम नया प्रकाश देंगे
मेरे लिए सदेव
प्रेरणा का स्त्रोत बनना
खुद को तुझे समर्पित करना ,
खुद को मुझे अर्पित करना ,
.........राहुल पाण्डेय "शिरीष"
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