रात में जब खामोशियाँ दस्तक देती हैं ,
खिड़की से दिखते चाँद में,
तेरी आकृति बनाता हूँ |
बारिश की बूंदें जब पत्तों से टपकती हैं ,
मिटटी की सोंधी महक में ,
तेरी आहट पाता हूँ |
तेरी पलकों की नरम छाह ही बाकि है ,
वरना ज़िन्दगी की कच्ची सड़क से ,
इशराक जाता हूँ |
तेरी झलक ही प्यास बढाती है ,
मैं तो बस तेरी यादों की धूमिल छवि पर ,
कविता बनाता हूँ |
.........राहुल पाण्डेय "शिरीष"
No comments:
Post a Comment