Saturday 4 February 2012

कविता बनाता हूँ...............

रात में जब खामोशियाँ दस्तक देती हैं ,
खिड़की से दिखते चाँद में,
तेरी आकृति बनाता हूँ |

बारिश की बूंदें जब पत्तों से टपकती हैं ,
मिटटी की सोंधी महक में ,
तेरी आहट पाता हूँ |

तेरी पलकों की नरम छाह ही बाकि है ,
वरना ज़िन्दगी की कच्ची सड़क से ,
इशराक जाता हूँ |

तेरी झलक ही प्यास बढाती है ,
मैं तो बस तेरी यादों की धूमिल छवि पर ,
कविता बनाता हूँ |

.........राहुल पाण्डेय "शिरीष"

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