Tuesday 28 February 2012

अर्थबोध ....

अंतरमन का अर्थबोध
भला कैसे हो ?
किस शैली में रचा जाए?
कितने शब्दों की पंक्ति हो?
बादल सी विशाल मनोवृति ,उसे
बूंद कहना ,शायद गलती हो ,
सन्दर्भों की समीक्षा जटिल ,
आशाओं की सार्थकता
कैसे हो ?
अंतरमन का अर्थबोध
भला कैसे हो ?
धुंध सी छाई स्मृति
में अक्स आवरण बने ,
सामीप्य था,मन का दिल से,
भावों की ऊष्मा .मेघ बने |
युगों से संजोये यादों के
चिन्ह मिट जाए,,,,कैसे हो ?
अंतरमन का अर्थबोध
भला कैसे हो ?
निर्जन बस्ती के ,तिमिर प्रकाश में
अनायास चाँद का पदार्पण हुआ
अवेवास्थित मन के कमरे में
उसका सत्कार कैसे हो ?
उसने मुझसे ,मैंने उससे
जो सपने देखे
उनका सरोकार कैसे हो ?
अंतरमन का अर्थबोध
भला कैसे हो ?

............राहुल पाण्डेय "शिरीष"

1 comment:

  1. This is really Very Very good wording...Even you will get attention on this poem only of people who knows hindi well as common people try to read easy lines.

    But words are truly high class.I am impressed.
    its shows your class dost.


    Dinesh Gupta 'din'
    dinesh.gupta28@gmail.com

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