कँवल मुस्कुराएँ थे ,,
पतझड़ में
वेदना असीम सह कर ,
भवरें
गूंजे थे उसपे ,
रात ने भी
ओस का आयोजन किया |
भोर की
नन्ही किरणों ,में
खिलती कुमुदनी ने .
अपने अधरों से ,
सब को मोह लिया |
अम्बर के रेखांकित
झुरियों से
वसुधा की
खोखली दरारों तक ,
इस बियाबानी उदासी में ,
तुमने ही मेरा साथ दिया |
मैं प्यासा नहीं
देह का
मुझे लालच नहीं
अधरों का
मुझे विश्वास की
वो कड़ी दे दो
जिसने मुझे पुनः जीवित किया |
बारिश की
कटाछ बूंदों से
गलता मेरा आत्मविश्वास
पिघलता मन ,
यौवन ,जीवन ,
को तुम्हारे स्पर्श ने जागृत किया |
अस्तित्व मेरा
मैला शीशा था ,
बरसो से बंद पिटारे में
इसे दर्पण
तुमने बनाया ,
मेरे उजड़े जड़ों को
तुमने फिर से
रोप दिया ......
प्रिये तुमने ही मेरा साथ दिया .......
-----------राहुल पाण्डेय "शिरीष"
प्रेम को उसकी सार्थकता में जी लेने की तडप,सुन्दर
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