Wednesday 22 February 2012

जाने कैसी अब्र होती है कवि की !......

जाने कैसी अब्र होती है कवि की !
शब्दों के पौध ,
रेंगते-रेंगते ,खड़े हो जाते हैं ,
और,
नयी कविता बन जाती है उसकी ,,
जाने कैसी अब्र होती है कवि की !
चाँद की रौशनी में,
तारों की खेती करता है,
लाखों लोगो की मनोवृतियों को ,
स्वंय महसूसता है |
अपनी कलम से उनकी ,
आवाज बनता है ,
जो पिसते हैं
काल-चक्रों के पत्थर में |
वो तीव्र ढाल का अवरोधक बनता है,
जहाँ से सामाजिक मूल्य
बेसहारा गिरते हैं |
वो कसौटी बनता है बदलाव की |
जाने कैसी अब्र होती है कवि की !
प्रेम की ज्योत से तम मिटाता है ,
किसी के दिल में झांक,
उसे अपना बना जाता है |
चाँद-सूरज एक साथ होने की
कल्पना ,,,
और ,,कोई
क्या कर पाता है ?
बारिश के बूंद से अश्क
अलग करता है |
शायद शब्दों की माला बनी
है इसके आंसुओं की |
जाने कैसी अब्र होती है कवि की !
वो हँसता है ,गाता है ,
अपनी नज्में सुनाता है |
हम "वाह-वाह","क्या खूब "
करते हैं |
वो तो अपने साथ घटित घटनाओं
को बताता है |
वो जीता है हमसे,हमारे एहसास
को बढाता है |
प्रेम-वियोग सारी अवस्थाओं में
हमारा साथ निभाता है ,,
क्या हमने कभी कोशिश की
है उसे जानने की ?
जाने कैसी अब्र होती है कवि की !

..... राहुल पाण्डेय "शिरीष"

1 comment:

  1. वाह राहुल जी,जाने कैसी अब्र होती है कवि की जो उसकी लेखनी को कभी सूखने नही देती
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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