Friday 24 February 2012

वो,मैं,और प्रेम ....

रात काली,सुहानी सी,
सलोनी थी ,
खेलती थी ,तेरी तरंगो से |
बितती घड़ियाँ ,
सुनती आहट,
पाती सरोकार हमारे
यौवन की |
जिस डगर को
हमने चुना था |
भटकती ज़िन्दगी ,
सहारा खोजती ,
राहों को जा मिली ,
उसी की |
विरह की वेदना ,
प्रबल थी |
किसी बीते ज़माने में
आज प्रश्नों के
सूचक उलटे पड़े
हैं ,उसी के |
गहरे थे भावों के
स्त्रोत ,आत्मा के
कोने में ,संजोये
हमने ,
सपने ,
अपने ,
उसी के अनुपात की |
टूट कर साकार हुआ ,
प्रेम कोई
किस्मत नहीं ,
ये सार है एक
कोशिश की |

.........राहुल पाण्डेय "शिरीष"

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर,बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति

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