Saturday 21 January 2012

मैं भी कुछ कह रहा था ....

चाँद अपनी चांदनी से खेल रहा था ,
मैं  हाल-ये-दिल उनसे कह रहा  था ,
पता नहीं ,अब बेवफा कौन था,
पर,कहर तो दोनों ओर ढेह रहा था |

आज लगता है, जो किया बेकार किया ,
कसमे ,नातों का व्यापार किया ,
दिल क्यों कह रहा था वो मेरी है ?
उसके दिल में तो कोई और रह रहा था |

बस वो दिन है ,और आज का दिन ,
दिल सिकुड़ सा गया है ,
फूल तो हम बहुत लाये ,पर मेहका नहीं
सारी कायनात आँखों के सामने ढेह रहा था |

उसे बोल देना चाहिए था मुझे ,
शायद हो सके तो मैं  मान लेता ,
पर खुदा जाने क्या बात थी ,
वो अपने में ही सह रहा था |

आज मिले तो पूछ लूँगा शायद ,
आखिर कमी क्या थी ,प्यार में ,
चुप रहना हिम्मकत की भाषा नहीं ,
सुन लेता ,मैं भी तो कुछ कह रहा था |


                           ------राहुल पाण्डेय "शिरीष"

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