Saturday 21 January 2012

मेरे ,उनके, सब के स्वर ......

तारे अलग चमक रहे हैं ,चाँद अलग चमक रहा हैं ,
एक घर में ,हम इधर सिसक रहे हैं ,वो उधर सिसक रहे हैं |

इस  मुल्क की क्या बात करे ,बहुत उबड़खाबड़ है ,
एक ही दुकान से,हम कुछ और ,वो कुछ और चख रहे हैं |

संसद हो ,मयखाना हो ,मेले की वो चरखी हो ,
पैसे की ताकत से आज बड़े बड़े बहक रहे हैं |

उनकी बात सही है,उनकी इज्जत बहुत बड़ी है,
घर में उनके भी औरत है ,वैश्य से  चहक रहे हैं

पूरी शाम हिमाकत में गुजर जाती है उनकी ,
बस आज नहीं गए तो कितना भड़क रहे हैं |

काम उनके पास भी कुछ खास नहीं रहता ,
बस इधर की बात उधर फेक रहे हैं |

बहुत दिन हो गया ,गया नहीं उनके घर ,
आज गया तो देखा,तस्वीर में ,जवानी देख रहे हैं

परवाह न करते किसी की ,मेरी तो कोई बात नहीं ,
मेरे आंसू निकल रहे हैं,वो घुटने  सेक रहे हैं |

आज शुकून देता हूँ आखिर मै ही ,और कोई नहीं ,
बड़ी उम्मीद से आज मुझको देख रहे हैं |

                     
                                           ------राहुल पाण्डेय "शिरीष"

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