तारे अलग चमक रहे हैं ,चाँद अलग चमक रहा हैं ,
एक घर में ,हम इधर सिसक रहे हैं ,वो उधर सिसक रहे हैं |
इस मुल्क की क्या बात करे ,बहुत उबड़खाबड़ है ,
एक ही दुकान से,हम कुछ और ,वो कुछ और चख रहे हैं |
संसद हो ,मयखाना हो ,मेले की वो चरखी हो ,
पैसे की ताकत से आज बड़े बड़े बहक रहे हैं |
उनकी बात सही है,उनकी इज्जत बहुत बड़ी है,
घर में उनके भी औरत है ,वैश्य से चहक रहे हैं
पूरी शाम हिमाकत में गुजर जाती है उनकी ,
बस आज नहीं गए तो कितना भड़क रहे हैं |
काम उनके पास भी कुछ खास नहीं रहता ,
बस इधर की बात उधर फेक रहे हैं |
बहुत दिन हो गया ,गया नहीं उनके घर ,
आज गया तो देखा,तस्वीर में ,जवानी देख रहे हैं
परवाह न करते किसी की ,मेरी तो कोई बात नहीं ,
मेरे आंसू निकल रहे हैं,वो घुटने सेक रहे हैं |
आज शुकून देता हूँ आखिर मै ही ,और कोई नहीं ,
बड़ी उम्मीद से आज मुझको देख रहे हैं |
------राहुल पाण्डेय "शिरीष"
एक घर में ,हम इधर सिसक रहे हैं ,वो उधर सिसक रहे हैं |
इस मुल्क की क्या बात करे ,बहुत उबड़खाबड़ है ,
एक ही दुकान से,हम कुछ और ,वो कुछ और चख रहे हैं |
संसद हो ,मयखाना हो ,मेले की वो चरखी हो ,
पैसे की ताकत से आज बड़े बड़े बहक रहे हैं |
उनकी बात सही है,उनकी इज्जत बहुत बड़ी है,
घर में उनके भी औरत है ,वैश्य से चहक रहे हैं
पूरी शाम हिमाकत में गुजर जाती है उनकी ,
बस आज नहीं गए तो कितना भड़क रहे हैं |
काम उनके पास भी कुछ खास नहीं रहता ,
बस इधर की बात उधर फेक रहे हैं |
बहुत दिन हो गया ,गया नहीं उनके घर ,
आज गया तो देखा,तस्वीर में ,जवानी देख रहे हैं
परवाह न करते किसी की ,मेरी तो कोई बात नहीं ,
मेरे आंसू निकल रहे हैं,वो घुटने सेक रहे हैं |
आज शुकून देता हूँ आखिर मै ही ,और कोई नहीं ,
बड़ी उम्मीद से आज मुझको देख रहे हैं |
------राहुल पाण्डेय "शिरीष"
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