Tuesday 24 January 2012

प्रियतमा .......

उम्मीदों की सतह पर काई जम गयी है ,
आस की  परछाई भी छुप   गयी   है |
प्रिये तुम्हारा मुख-मंडल ही ,मात्र
प्रकाशित   स्त्रोत     है |
तेरे-मेरे धडकनों की गूंज ही केवल
रात की आखिरी ज्योत  है |
स्वप्न का वो स्वेत सूत ,जिसकी उधेरबुन ,
में दिन काल्मई हो जाती है |
प्रियतमा  तुम्हारे एक छुवन से ,
जीवन सुरमई  हो  जाता  है |
तेरे कपोलो की थिरकन से चन्द्रमा  जलता है,
तेरे देह की भाषा में,मेरा सारा साहित्य पलता है |

                         --------राहुल पाण्डेय "शिरीष "

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