उम्मीदों की सतह पर काई जम गयी है ,
आस की परछाई भी छुप गयी है |
प्रिये तुम्हारा मुख-मंडल ही ,मात्र
प्रकाशित स्त्रोत है |
तेरे-मेरे धडकनों की गूंज ही केवल
रात की आखिरी ज्योत है |
स्वप्न का वो स्वेत सूत ,जिसकी उधेरबुन ,
में दिन काल्मई हो जाती है |
प्रियतमा तुम्हारे एक छुवन से ,
जीवन सुरमई हो जाता है |
तेरे कपोलो की थिरकन से चन्द्रमा जलता है,
तेरे देह की भाषा में,मेरा सारा साहित्य पलता है |
--------राहुल पाण्डेय "शिरीष "
आस की परछाई भी छुप गयी है |
प्रिये तुम्हारा मुख-मंडल ही ,मात्र
प्रकाशित स्त्रोत है |
तेरे-मेरे धडकनों की गूंज ही केवल
रात की आखिरी ज्योत है |
स्वप्न का वो स्वेत सूत ,जिसकी उधेरबुन ,
में दिन काल्मई हो जाती है |
प्रियतमा तुम्हारे एक छुवन से ,
जीवन सुरमई हो जाता है |
तेरे कपोलो की थिरकन से चन्द्रमा जलता है,
तेरे देह की भाषा में,मेरा सारा साहित्य पलता है |
--------राहुल पाण्डेय "शिरीष "
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