सम्मोहन से निकल कर ,यथार्थ का जामा बुना है ,
पाषाण की रूढ़ीवाद छोड़ ,नया जीवन चुना है |
बिलाकती खामोशियों को मुंडेर से धकेला है |
रूह को आवाज दी है,अब उसे सुनना है |
बेचैनियों के दम पर ,हमने तोड़ी थी जो कसमें ,
बहरूपिया बन कर ,बेचैनियों को आज ठगना है |
रिश्तों की कश्म -काश में उलझा है क्या पथिक
रिश्तें हैं चीर अम्बर ,एहमियत इनकी ,कई गुना है |
बरबादियों को भूल कर निकले थे उस डगर पर ,
अवशेषों से अपने घर को आज फिर सजाना है |
------राहुल पाण्डेय "शिरीष"
पाषाण की रूढ़ीवाद छोड़ ,नया जीवन चुना है |
बिलाकती खामोशियों को मुंडेर से धकेला है |
रूह को आवाज दी है,अब उसे सुनना है |
बेचैनियों के दम पर ,हमने तोड़ी थी जो कसमें ,
बहरूपिया बन कर ,बेचैनियों को आज ठगना है |
रिश्तों की कश्म -काश में उलझा है क्या पथिक
रिश्तें हैं चीर अम्बर ,एहमियत इनकी ,कई गुना है |
बरबादियों को भूल कर निकले थे उस डगर पर ,
अवशेषों से अपने घर को आज फिर सजाना है |
------राहुल पाण्डेय "शिरीष"
No comments:
Post a Comment