उसने कहा था, मैं आउंगी ,
बन्धनों के सारे द्वार खोल कर ,
क्रन्दनों को भूल कर ,
समर्पण के सारे नातें निभाउंगी,,
उसने कहा था ,,मैं आउंगी ...|
तारों का रूप बनकर ,
बIदल में धुप बनकर ,
मैं तुझमे बेखुद हो जाउंगी ..
उसने कहा था ,,मैं आउंगी ...|
तरकश की तीर सी ,
झरने की शुद्ध नीर सी ,
तेरे दिल तक पहुँच ही जाउंगी ..
उसने कहा था ,,मैं आउंगी ...|
जिस डगर पर ,
साँझ ढले चिड़िया ढूंढ़ती है बसेरा ,
सागर के जिस तट से होता है सबेरा ,
पंछी की आवाज ,सूरज की धुप बन ..
तुझे छु जाउंगी ...
उसने कहा था,, मैं आउंगी ...|
आकेलेपन की आवाज बनकर ,
तेरे जीवन का इकबाल बनकर ,
हर मोड़ पर अपना एहसास-ए-जमाल कराउंगी ...
उसने कहा था ,,मैं आउंगी ...|
वो आती है ओझल हो जाती है ,
सांसो को सांसो से छेद जाती है ,
आज भी इतात है वो मेरे लिए
क्योंकि .......
उसने कहा था ,,मैं आउंगी,,,,.....||
-------राहुल पाण्डेय "शिरीष"
बन्धनों के सारे द्वार खोल कर ,
क्रन्दनों को भूल कर ,
समर्पण के सारे नातें निभाउंगी,,
उसने कहा था ,,मैं आउंगी ...|
तारों का रूप बनकर ,
बIदल में धुप बनकर ,
मैं तुझमे बेखुद हो जाउंगी ..
उसने कहा था ,,मैं आउंगी ...|
तरकश की तीर सी ,
झरने की शुद्ध नीर सी ,
तेरे दिल तक पहुँच ही जाउंगी ..
उसने कहा था ,,मैं आउंगी ...|
जिस डगर पर ,
साँझ ढले चिड़िया ढूंढ़ती है बसेरा ,
सागर के जिस तट से होता है सबेरा ,
पंछी की आवाज ,सूरज की धुप बन ..
तुझे छु जाउंगी ...
उसने कहा था,, मैं आउंगी ...|
आकेलेपन की आवाज बनकर ,
तेरे जीवन का इकबाल बनकर ,
हर मोड़ पर अपना एहसास-ए-जमाल कराउंगी ...
उसने कहा था ,,मैं आउंगी ...|
वो आती है ओझल हो जाती है ,
सांसो को सांसो से छेद जाती है ,
आज भी इतात है वो मेरे लिए
क्योंकि .......
उसने कहा था ,,मैं आउंगी,,,,.....||
-------राहुल पाण्डेय "शिरीष"
बहुत सुन्दर,बहुत ही सुन्दर,बधाई
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