अब कोई नहीं रहता....
उस मकान मे ,
अब कोई नहीं रहता ।
खिड़कियाँ टूट गयी है,
फाँको ,से धूप जाती है।
बारिश जाती है,
पर नजरे नहीं जाती ,
क्योंकि वहाँ ,
अब कोई नहीं रहता ।
वह एक छत से दूसरी तक ;
ताकती -मिलती आंखे ,
प्रेम के भाव से खिलती आंखे ,
पथरा सी गयी हैं ,
क्योंकि वहाँ ,
अब कोई नहीं रहता ।
उस मकान मे ,
एक रौशांदान था,आज भी है ,
जिसपे गौरैया का बसेरा था ,
उसके बच्चों की चहचाहट थी ,
आज भी है ,पर सुनता कोई नहीं ,
क्योंकि वहाँ ,
अब कोई नहीं रहता ।
रह गए हैं ,बस बूढ़े खम्भे ,
छत को समभाले हुए ,
छत भी बेमन सा पसरा हुआ है
आज ढूँढता है,वो आवाज ,जिसपे चिढ़ता था ,
पर लाचार है ,
क्योंकि वहाँ ,
अब कोई नहीं रहता ।
फिकरे भी गूँजती थी,उस मकान मे
पर ,हंसी फेक बाहर करती थी ,
अपने एक क्षत्र राज पर ,
खूब ठाट करती थी ,
पर आज हंसी भी फिक्र की
हमदम है ।
क्योंकि वहाँ ,
अब कोई नहीं रहता ।
पर दिल का क्या ,
आज भी धड़कता है ,
आँखें आज भी उधर देखती हैं ,
पलक झपकते नहीं अब ,
बियाबान सी उदासी छाई है ।
क्योंकि वहाँ ,
अब कोई नहीं रहता । । । ।
------राहुल पाण्डेय "शिरीष"
उस मकान मे ,
अब कोई नहीं रहता ।
खिड़कियाँ टूट गयी है,
फाँको ,से धूप जाती है।
बारिश जाती है,
पर नजरे नहीं जाती ,
क्योंकि वहाँ ,
अब कोई नहीं रहता ।
वह एक छत से दूसरी तक ;
ताकती -मिलती आंखे ,
प्रेम के भाव से खिलती आंखे ,
पथरा सी गयी हैं ,
क्योंकि वहाँ ,
अब कोई नहीं रहता ।
उस मकान मे ,
एक रौशांदान था,आज भी है ,
जिसपे गौरैया का बसेरा था ,
उसके बच्चों की चहचाहट थी ,
आज भी है ,पर सुनता कोई नहीं ,
क्योंकि वहाँ ,
अब कोई नहीं रहता ।
रह गए हैं ,बस बूढ़े खम्भे ,
छत को समभाले हुए ,
छत भी बेमन सा पसरा हुआ है
आज ढूँढता है,वो आवाज ,जिसपे चिढ़ता था ,
पर लाचार है ,
क्योंकि वहाँ ,
अब कोई नहीं रहता ।
फिकरे भी गूँजती थी,उस मकान मे
पर ,हंसी फेक बाहर करती थी ,
अपने एक क्षत्र राज पर ,
खूब ठाट करती थी ,
पर आज हंसी भी फिक्र की
हमदम है ।
क्योंकि वहाँ ,
अब कोई नहीं रहता ।
पर दिल का क्या ,
आज भी धड़कता है ,
आँखें आज भी उधर देखती हैं ,
पलक झपकते नहीं अब ,
बियाबान सी उदासी छाई है ।
क्योंकि वहाँ ,
अब कोई नहीं रहता । । । ।
------राहुल पाण्डेय "शिरीष"
bahut khoob...
ReplyDeleteTouching
ReplyDelete