आज कमरे में सिमटती है जिंदगानी ,
रूह भी डरती है ,कहने में अपनी कहानी I
आत्मा हर राह पर तोड़ी-मरोड़ी जाती है ,
आज तो स्वछंद सागर भी भूल गया है ,अपनी रवानी |
जीवन राख है ,बाकि सब अवशेष है ,
धमनियों में भय है ,चरागों में पानी |
कभी बोलोगे तुम कुछ,सुनूंगा मैं भी ,
इसी इन्तेजार में हमने ,बिता दी जवानी |
मेहँदी भी लगती है ,अब ,लहू के धब्बे ,
दफना दी है ,मिटटी में ,हमने दिल की निशानी ......
-------राहुल पाण्डेय "शिरीष "
रूह भी डरती है ,कहने में अपनी कहानी I
आत्मा हर राह पर तोड़ी-मरोड़ी जाती है ,
आज तो स्वछंद सागर भी भूल गया है ,अपनी रवानी |
जीवन राख है ,बाकि सब अवशेष है ,
धमनियों में भय है ,चरागों में पानी |
कभी बोलोगे तुम कुछ,सुनूंगा मैं भी ,
इसी इन्तेजार में हमने ,बिता दी जवानी |
मेहँदी भी लगती है ,अब ,लहू के धब्बे ,
दफना दी है ,मिटटी में ,हमने दिल की निशानी ......
-------राहुल पाण्डेय "शिरीष "
यथार्थ
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