चेहरे पर युही झुरीय नहीं पड़ी ,
कुछ हमने भी सहा है ,
रात को चुपके से छोड़ चले जाते हो ,
कभी मैंने कुछ कहा है ।
अब गूंगे हो,कुछ ना कहोगे ,
पर मैंने सुना है ,
अपने मुरादों से झगड़ते हो,
इन दीवारों ने मुझसे कहा है।
तुम उसकी तालिम देते हो ,
मैंने माना है ,
पर कोसते हो तुम उसको ,
उसने कहा है ।
बार-बार मेरे दिल ने तुम्हें आवाज दी ,
सब ने सुना है ,
हर बार तुमने स्मवत खो दी ,
दुनिया ने कहा है।
"तुमने" कहने मे देर कर दी ,
तुमने कहा है ,
मैं तो कहता ही रहा हु ,
तुमने सुना कहा है ।
इशारे भी कुछ कहते हैं ,
मैंने देखा है ,
इशारे मे तुमने क्या-क्या कर दिया,
मैंने सुना है ......
----राहुल पाण्डेय "शिरीष"
कुछ हमने भी सहा है ,
रात को चुपके से छोड़ चले जाते हो ,
कभी मैंने कुछ कहा है ।
अब गूंगे हो,कुछ ना कहोगे ,
पर मैंने सुना है ,
अपने मुरादों से झगड़ते हो,
इन दीवारों ने मुझसे कहा है।
तुम उसकी तालिम देते हो ,
मैंने माना है ,
पर कोसते हो तुम उसको ,
उसने कहा है ।
बार-बार मेरे दिल ने तुम्हें आवाज दी ,
सब ने सुना है ,
हर बार तुमने स्मवत खो दी ,
दुनिया ने कहा है।
"तुमने" कहने मे देर कर दी ,
तुमने कहा है ,
मैं तो कहता ही रहा हु ,
तुमने सुना कहा है ।
इशारे भी कुछ कहते हैं ,
मैंने देखा है ,
इशारे मे तुमने क्या-क्या कर दिया,
मैंने सुना है ......
----राहुल पाण्डेय "शिरीष"
Talk less to people whom u love the most, for if they understand ur silence , they understand u the most.....Sach hai....
ReplyDeletePar sagar ki gehrai napne k liye usse kankar to phekana padta hai..
Kitni contradictory hai na..
This is a lovely poem in which silence speaks and noise remains silent..
Grt job...