Thursday 19 January 2012

मेरा चाँद ......उसकी चांदनी ....

मैं अनजान नक्षत्र सा आकाश में चाँद को ढूंढ़ रहा हूँ ,
तेरे चेहरे के सिलवटों  पर मुस्कान को ढूंढ़ रहा हूँ |

जिसके एक कथन पर अम्बर सा साज किया था ,
आज   वो   प्रबल  आवाज  ढूंढ़   रहा  हूँ |

मेरे "चाँद" पर रकाबत करता था वो चाँद ,
आज मैं अपनी चांदनी पर नाज ढूंढ़ रहा हूँ |

बाजी हर चूका हूँ ,कुछ तो चुकाना होगा,
फरेब-ए-बाका से खानों में प्यादे ढूंढ़ रहा हूँ |

उसके शहर के हर लोग पहचानते हैं मुझे,
आज उसकी आँखों में अपनी पहचान ढूंढ़ रहा हूँ |

गुन्छे की खुसबू से मदहोश कर देते थे ,
आज,सारा मय खत्म  हो गया ,मदहोशी ढूंढ़ रहा हूँ |

बहुत सहेजा था,तुम्हारे पद-चिन्ह ,सागर किनारे ,
मिटाने वाली,उस एक लहर को ढूंढ़ रहा हूँ  |

तमस में बैठा हूँ,सारी दुनिया  से हार कर ,
फिर से जितने के लिए ,बस तुम्हे ढूंढ़ रहा हूँ |

                           -----राहुल पाण्डेय "शिरीष"

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