मैं अनजान नक्षत्र सा आकाश में चाँद को ढूंढ़ रहा हूँ ,
तेरे चेहरे के सिलवटों पर मुस्कान को ढूंढ़ रहा हूँ |
जिसके एक कथन पर अम्बर सा साज किया था ,
आज वो प्रबल आवाज ढूंढ़ रहा हूँ |
मेरे "चाँद" पर रकाबत करता था वो चाँद ,
आज मैं अपनी चांदनी पर नाज ढूंढ़ रहा हूँ |
बाजी हर चूका हूँ ,कुछ तो चुकाना होगा,
फरेब-ए-बाका से खानों में प्यादे ढूंढ़ रहा हूँ |
उसके शहर के हर लोग पहचानते हैं मुझे,
आज उसकी आँखों में अपनी पहचान ढूंढ़ रहा हूँ |
गुन्छे की खुसबू से मदहोश कर देते थे ,
आज,सारा मय खत्म हो गया ,मदहोशी ढूंढ़ रहा हूँ |
बहुत सहेजा था,तुम्हारे पद-चिन्ह ,सागर किनारे ,
मिटाने वाली,उस एक लहर को ढूंढ़ रहा हूँ |
तमस में बैठा हूँ,सारी दुनिया से हार कर ,
फिर से जितने के लिए ,बस तुम्हे ढूंढ़ रहा हूँ |
-----राहुल पाण्डेय "शिरीष"
तेरे चेहरे के सिलवटों पर मुस्कान को ढूंढ़ रहा हूँ |
जिसके एक कथन पर अम्बर सा साज किया था ,
आज वो प्रबल आवाज ढूंढ़ रहा हूँ |
मेरे "चाँद" पर रकाबत करता था वो चाँद ,
आज मैं अपनी चांदनी पर नाज ढूंढ़ रहा हूँ |
बाजी हर चूका हूँ ,कुछ तो चुकाना होगा,
फरेब-ए-बाका से खानों में प्यादे ढूंढ़ रहा हूँ |
उसके शहर के हर लोग पहचानते हैं मुझे,
आज उसकी आँखों में अपनी पहचान ढूंढ़ रहा हूँ |
गुन्छे की खुसबू से मदहोश कर देते थे ,
आज,सारा मय खत्म हो गया ,मदहोशी ढूंढ़ रहा हूँ |
बहुत सहेजा था,तुम्हारे पद-चिन्ह ,सागर किनारे ,
मिटाने वाली,उस एक लहर को ढूंढ़ रहा हूँ |
तमस में बैठा हूँ,सारी दुनिया से हार कर ,
फिर से जितने के लिए ,बस तुम्हे ढूंढ़ रहा हूँ |
-----राहुल पाण्डेय "शिरीष"
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