'वज्ह' पर तेरी ,सुबह -शाम मरना है,
आज आफ़ताब को तेरी, रुख पर ढलना है |
इन्तेजार है ,आओगे .पता है ,यकीं नहीं ,
गुलशन से अलग हो कर ,आज मुझे वनवास बनना है |
चिंता है,फ़िक्र है,गम की काली स्याही है,
विगत -स्मृति भूल कर ,आज मुझे आसान बनना है|
खामोशियों को चीर कर,विरानियों को छोड़ कर,
आज मुझे तेरा आजिज बनना है |
आज आकाश ,धरती ,नखत ब्रह्माण्ड बनना है,
थोड़ी मानवता लेकर ,आज मुझे इंसान बनना है||
-------राहुल पाण्डेय "शिरीष"
आज आफ़ताब को तेरी, रुख पर ढलना है |
इन्तेजार है ,आओगे .पता है ,यकीं नहीं ,
गुलशन से अलग हो कर ,आज मुझे वनवास बनना है |
चिंता है,फ़िक्र है,गम की काली स्याही है,
विगत -स्मृति भूल कर ,आज मुझे आसान बनना है|
खामोशियों को चीर कर,विरानियों को छोड़ कर,
आज मुझे तेरा आजिज बनना है |
आज आकाश ,धरती ,नखत ब्रह्माण्ड बनना है,
थोड़ी मानवता लेकर ,आज मुझे इंसान बनना है||
-------राहुल पाण्डेय "शिरीष"
very nice
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