नीरवता के नीरज वसंत मे ,
कंकाल स्याह की डगर ,तुम्हें
ढूंढ रही है ।
आलिंगन की मधुर रात मे,
दिव्य उर्मियाँ ,शिखर पर ,तुम्हें
ढूंढ रही है ।
सुर्ख होठों की कंपन मे ,
जैसे चन्दन पिसता गंगा जल मे ,
वो गंगा तट तुम्हें ढूंढ रहा है ।
उल्लासों की अमर बेलि ,अश्रु के संवेद धार मे,
बाट जोहती मधुयामिनी व्योम ,तुम्हें
ढूंढ रही है ।
हृदय की घनघोर ,प्रगतिमय "धडक"मे ,
घोर सांसरिक ,यौवन की खिलती मुरझाई कालिया ,तुम्हें
ढूंढ रही है ।
----- राहुल पाण्डेय"शिरीष"
कंकाल स्याह की डगर ,तुम्हें
ढूंढ रही है ।
आलिंगन की मधुर रात मे,
दिव्य उर्मियाँ ,शिखर पर ,तुम्हें
ढूंढ रही है ।
सुर्ख होठों की कंपन मे ,
जैसे चन्दन पिसता गंगा जल मे ,
वो गंगा तट तुम्हें ढूंढ रहा है ।
उल्लासों की अमर बेलि ,अश्रु के संवेद धार मे,
बाट जोहती मधुयामिनी व्योम ,तुम्हें
ढूंढ रही है ।
हृदय की घनघोर ,प्रगतिमय "धडक"मे ,
घोर सांसरिक ,यौवन की खिलती मुरझाई कालिया ,तुम्हें
ढूंढ रही है ।
----- राहुल पाण्डेय"शिरीष"
जीवन में प्रेम के आते ही कविता में जीवन मुखर हो उठता है,अति सुन्दर
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