Sunday 22 January 2012

मैं पागल हूँ शायद ......

मैं पागल हूँ शायद |
न मैं किसी को समझा पाता हूँ ,
न कोई मुझे समझ पाता है |
वो लोग कहते हैं मुझसे  ,
की खुल कर बोलो मन की बात ,
पर क्या हो समझ सकेंगे ,
वो अंतर-द्वन्द ,मन का वो भूचाल |
जिसे मैंने बचपन से जवानी तक ,आज तक ,
इस दिल में सहेज कर फिरता हूँ |
लाख करते हैं ,तानो ,हमदर्दी की बौछार ,
पर काफी न होता है ,आकाश के फट पड़ने का सौभाग्य |
उस नदी की धार  में ,सिर्फ मेरा जिस्म तैरता है,
मन तो लगता है कई यगो से नदी की सतह में ,
धस सा गया है ,फस सा गया है |
रौनको की इस तिलस्मी बाज़ार में ,
सब बाहरी आवरण देख कर परखते हैं
किसकी आँखों में वो रौशनी है,
जो भीतर झांक कर,दिल को टटोले |
पहले तो माँ थी ,जान जाती थी ,
पर आज दूर हूँ ,किस से कहूँ जान ले |
आकाश और धरती के बीच भी शायद,
इतना  फासला न हो ,जितना ,
सब ने मुझसे पैदा किया है ,
किताब की प्रथम पृष्ट भी ,
मेरी तरह  व्याकुल रहती है,की
कोई प्रेम से जान ले मेरे मनोभाव |
कब से ,आज भी ,इन्तेजार कर रहा हूँ ,
कोई तो होगा ,जो निरदैता की बर्बर पोषक ,
फेक मेरे दिल को अपने आत्मा से छु ले |
पर शायद ,आये या न ,या गलती मेरी ही रही हो हमेशा ,....
पर कोई समझा तो जाये ...की गलती किसकी .........


                                 -------राहुल पाण्डेय "शिरीष"

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